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हरियाणा में यंगिस्तान की कहानी और किरदार

हरियाणा में यंगिस्तान राजनीति की अपनी एक कहानी है और इस कहानी के किरदारों की एक लंबी फेहरिस्त है। 41 साल की उम्र में चौधरी बंसीलाल हरियाणा के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने और ये रिकॉर्ड आज भी कायम है। सुषमा स्वराज 25 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र में चौधरी देवीलाल की सरकार में मंत्री बनीं और यह रिकॉर्ड भी आज तक कायम है। 2014 में 26 साल के दुष्यंत चौटाला हिसार से लोकसभा के सदस्य बने। सबसे कम उम्र में सांसद बनने का यह रिकॉर्ड भी आज तक बरकरार है। प्रदेश के तीन लाल परिवारों के सदस्यों अजय ङ्क्षसह चौटाला, अभय ङ्क्षसह चौटाला, दुष्यंत चौटाला, सुरेंद्र ङ्क्षसह, किरण चौधरी, श्रुति चौधरी, चंद्रमोहन बिश्रोई, कुलदीप बिश्रोई व भव्य बिश्रोई काफी उम्र में ही राजनीति में स्थापित हो गए। हरियाणा की यंगिस्तान की सियासत की पड़ताल करती हमारी यह रिपोर्ट:

चौधरी बंसीलाल: यंगिस्तान की सियासत के शिखर पुरुष। कोई पॉलीटिकल बैकग्राऊंड नहीं था। अपने कौशल और प्रतिभा के चलते राजनीति में मुकाम हासिल किया। 41 साल की उम्र में हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए। आज भी यह एक रिकॉर्ड है। इससे पहले राज्यसभा के सदस्य रहे। चौधरी बंसीलाल 1958 में वे राजनीति में आए। सबसे पहले पंजाब प्रदेश कांग्रेस के सदस्य बने। बंसीलाल 1968 से लेकर 1975, 1972 से लेकर 1975, 1986 से लेकर 1987 और 1996 से लेकर 1999 तक चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे।

वे अपने जीवन में साल 1977 में चंद्रावती के सामने भिवानी संसदीय सीट से चुनाव हारे और 1987 में तोशाम विधानसभा क्षेत्र से उन्हें लोकदल के धर्मबीर ङ्क्षसह ने हराया। साल 1968 में बंसीलाल पहली बार मुख्यमंत्री बने। इंदिरा और संजय गांधी के करीबी माने जाने वाले बंसीलाल को आधुनिक हरियाणा का निर्माता भी कहा जाता है। 1972 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली और बंसीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाए गए। 1975 में केंद्र की सियासत में आ गए। उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया। साल 1990 में कांग्रेस से किनारा कर हरियाणा विकास पार्टी बना ली। 1996 में बंसीलाल ने आज भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और तीसरी बार हरियाणा के चीफ मिनिस्टर बन गए। 1999 तक इस पद रहे। साल 2004 में हविपा का विलय कांग्रेस में कर दिया।

सुषमा स्वराज: यंगिस्तान पॉलिटिक्स में हरियाणा में सबसे बड़ा नाम रहा सुषमा स्वराज का। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। तीन बार केंद्रीय मंत्री बनीं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं। उन्हें सियासत विरासत में नहीं मिली। राजनीति में अपने बलबूते बुलंदियों को छुआ। सियासी सफर की शुरूआत हरियाणा से हुई। 1977 में जनता पार्टी से अम्बाला कैंट से विधायक निर्वाचित हुई। 25 बरस की सुषमा स्वराज चौधरी देवीलाल की कैबीनेट में सबसे युवा मंत्री बनाई गईं।

14 फरवरी 1952 को जन्मी सुषमा स्वराज 1987 से लेकर 1990 तक भी देवीलाल सरकार में मंत्री रहीं। 90 के दशक में केंद्र की सियासत में सक्रिय हो गईं। 1990 में राज्यसभा की सदस्य चुनी गई। 1996 में दिल्ली साऊथ से सांसद बन गईं और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहीं। 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 2000 से लेकर 2003, 2003 से 2004 और 2014 से 2019 तक केंद्रीय मंत्री रहीं। 2009 से लेकर 2014 तक सुषमा स्वराज ने लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपना प्रभाव छोड़ा। गजब की वाकपुटता और राजनीतिक कौशल के चलते सुषमा स्वराज देश की सियासत में एक बड़ा चेहरा बनकर सामने आईं।

कुमारी सैलजा: सुषमा स्वराज के बाद हरियाणा से कुमारी सैलजा ने केंद्र की सियासत में अपनी एक पहचान बनाई। पिता की मौत के बाद उन्हें सियासत में आना पड़ा। 1988 में सिरसा संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस से कुमारी सैलजा को उम्मीदवार बनाया गया। वे जनता दल के हेतराम से चुनाव हार गईं। साल 1991 के संसदीय चुनाव में कुमारी सैलजा सिरसा लोकसभा से पहली बार सांसद बनीं। उस समय सैलजा 29 साल की थीं।

वे नरसिम्हा राव सरकार में राज्य शिक्षा मंत्री बनाई गईं। इससे पहले साल 1990 में कुमारी सैलजा को हरियाणा महिला कांग्रेस की प्रधान भी चुना गया। 1996 में कुमारी सैलजा ने फिर से सिरसा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। साल 1998 में वे इनैलो के डा. सुशील इंदौरा से चुनाव हार गईं। इस हार के बाद कुमारी सैलजा ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया। साल 2004 के संसदीय चुनाव में उन्होंने अम्बाला संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रत्तनलाल कटारिया को हराया। 2009 के संसदीय चुनाव में वे फिर से अम्बाला से सांसद चुनी गईं।

 

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